नमस्कार, मेरे पुराने पाठकों का मेरे ब्लॉग (Free Padhai) पर वापिस स्वागत हैं। अब तक हम भारतीय संविधान के 19 अनुच्छेदों के बारे में विस्तार से पढ़ चुके हैं। मुझे उम्मीद है कि आपको उन सभी अनुच्छेदों के बारे में विस्तार से जानकारी मिली होगी और आपने इनके नोट्स भी तैयार कर लिए होंगे। आज हम उसके आगे भारतीय संविधान का अनुच्छेद 20 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 20) के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे तो बिना समय गंवाए आज की पढ़ाई शुरू करते हैं।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 20 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 20)
परिचय
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 20 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 20) भारत के संविधान का एक मौलिक अधिकार है जो उन नागरिकों के लिए हैं जिन्होंने कोई अपराध किया हैं यानी यह अनुच्छेद अपराधियों के बारे में बात करता हैं। इस अनुच्छेद के द्वारा अपराधों के आरोपित व्यक्तियो को सुरक्षा प्रदान कि गई है। साथ ही अनुच्छेद 20 यह भी सुनिश्चित करता हैं राज्य आरोपित व्यक्तियों के साथ अन्यायपूर्ण और अनुचित व्यवहार ना करें।
पूर्ववर्ती विधान से सुरक्षा
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 20 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 20) का खंड 1 किसी भी अपराधी के ऊपर लगे आरोपों और उनकी सजा के बारे में बात करता हैं। भारत के संविधान का अनुच्छेद 20 कहता हैं कि किसी भी अपराधी पर लगे आरोप इस बात से अपराध की श्रेणी में नहीं माने जा सकते की वो वर्तमान समय में अपराध हैं या नहीं।
इसके लिए अपराधी के ऊपर लगे आरोप जब अपराध किया गया इस समय के कानूनों में वो अपराध की श्रेणी में आने चाहिए और यदि अपराध सिद्ध होता हैं तो सजा भी उसी कानून के अनुसार मिलेगी यानी की उस अपराध के लिए सजा आज उसके जैसे अपराध के लिए जो हैं वो नहीं दी जा सकती।
यदि हम इसे उदाहरण के साथ समझने की कोशिश करें तो मान लेते हैं किसी x व्यक्ति ने जब नया नया इन्टरनेट आया था तब किसी y व्यक्ति को किसी भी इन्टरनेट माध्यम से गाली या कोई दूसरा गलत काम किया हों जो अपराध लगता हैं या आज अपराध हैं। और आज x व्यक्ति पर y व्यक्ति ने उस बात के लिए केस कर दिया तो x व्यक्ति को सजा नहीं दी जा सकती क्योंकि x व्यक्ति द्वारा किया गया काम उस समय अपराध की श्रेणी में था ही नहीं क्योंकि उसके लिए ऐसा कोई कानून नहीं था जो उसे अपराध घोषित कर सके।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 20 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 20) नागरिकों को पूर्ववर्ती विधान से सुरक्षा प्रदान करता है, जो प्राकृतिक न्याय का मुख्य सिद्धांत है।
दोहरे दंड से सुरक्षा
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 20 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 20) अपने खण्ड 2 द्वारा सुनिश्चित करता है कि किसी भी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए दो बार परीक्षण और सजा नहीं दी जा सकती।
यानि किसी भी व्यक्ति को किसी भी न्यायालय द्वारा अपराधी घोषित करने के बाद सजा दी जा चुकी हैं तो उस अपराध के लिए उस व्यक्ति को दुबारा सजा नहीं दी जा सकतीं। यहां पर इस बात को ध्यान में रखना ज़रूरी की अपराधी को किसी भी न्यायलय में सुनाई गई सजा को बढ़ाया नहीं जा सकता उसे कम किया जा सकता हैं लेकिन उस अपराध के लिए जुर्माना अलग अलग व्यक्तियों के अलग अलग हो सकता हैं और उसे कम या ज्यादा भी किया जा सकता हैं।
इस प्रकार भारतीय संविधान का अनुच्छेद 20 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 20) नागरिकों को दोहरी सजा से सुरक्षित रखता है, जो दंड संहिता का मौलिक सिद्धांत है।
खुद के खिलाफ गवाही से सुरक्षा
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 20 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 20) का खंड 3 किसी भी नागरिक को अपने विरुद्ध गवाही देने से रोकता हैं। इस प्रावधान को भारत के संविधान में जोड़ने के पीछे संविधान निर्माताओं का उद्देश्य था की किसी भी नागरिक पर पुलिस या अन्य कोई दुसरी ताकत द्वारा गुनाहा काबुल करने के लिए दबाव न बनाया जाए।
यहां गौर करने वाली बात यह हैं की अपराधी हस्ताक्षर और फिंगरप्रिंट देने के लिए यह बोल कर मना नहीं कर सकता कि यह मेरे विरुद्ध मेरी ही गवाही हैं जिससे भारत के संविधान के अनुच्छेद 20 में उल्लेखित मौलिक अधिकार का हनन हो रहा हैं । ऐसे मामलों में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा हैं कि हस्ताक्षर और फिंगरप्रिंट से अनुच्छेद 20 के खण्ड 3 का उल्लंघन नहीं माना जायेगा।
अनुच्छेद 20 का महत्त्व
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 20 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 20) इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि यह सुनिश्चित करता है कि नागरिकों के साथ भारत की दंडित न्याय प्रणाली द्वारा निष्पक्षता से और न्याय पूर्णता से व्यवहार किया जाए।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 20 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 20) सुनिश्चित करता हैं कि भारत के नागरिकों को पूर्व विधित विधान से सुरक्षा प्रदान कि जाए जिससे नागरिकों से साथ न्याय हो।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 20 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 20) यह भी सुनिश्चित करता हैं कि भारत के किसी भी नागरिक को एक ही अपराध के लिए बार बार सजा नहीं दी जा सकता। यानि किसी भी नागरिक के विरुद्ध एक ही अपराध के लिए को बार बार न्यायलय में नहीं लाया जा सकता हैं।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 20 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 20) भारत के नागरिकों को अपने विरुद्ध गवाही ना देने का मौलिक अधिकार प्रदान करता हैं। इन सभी प्रावधानों के चलते अनुच्छेद 20 और भी महत्वपूर्ण हो जाता हैं।
न्यायालय की व्याख्या
न्यायालय द्वारा भारतीय संविधान का अनुच्छेद 20 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 20) का कई मामलों में व्याख्यान किया गया है। जिसमें प्रमुख हैं महाराष्ट्र राज्य बनाम मधुकर नारायण मार्डिकर का महत्वपूर्ण मामला। जिसके बाद न्यायालय ने कहा की भारत के संविधान का अनुच्छेद 20 का खण्ड 1 केवल फौजदार मामलों पर ही लागू होता है। अर्थात् अनुच्छेद 20 का खण्ड 1 सिविल मामलों पर लागू नहीं होता हैं।
निष्कर्ष
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 20 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 20) भारतीय संविधान में उल्लेखित एक मौलिक अधिकार है जो अपराधों के आरोपित व्यक्तियों की सुरक्षा प्रदान करता है। यह अनुच्छेद सुनिश्चित करता है कि व्यक्तियों के साथ राज्य दंडित न्याय प्रणाली द्वारा निष्पक्षता से और न्याय पूर्णता से व्यवहार करें। साथ ही नागरिकों को अधिकार प्रदान करता हैं कि वो अपने विरोध गवाही ना दे तथा दोहरे दंड से सुरक्षा प्रदान करता हैं।
आपके सवाल
आर्टिकल 20 में क्या लिखा है?
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 20 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 20) भारतीय संविधान में उल्लेखित एक मौलिक अधिकार है जो अपराधों के आरोपित व्यक्तियों की सुरक्षा प्रदान करता है। यह अनुच्छेद सुनिश्चित करता है कि व्यक्तियों के साथ राज्य दंडित न्याय प्रणाली द्वारा निष्पक्षता से और न्याय पूर्णता से व्यवहार करें। साथ ही नागरिकों को अधिकार प्रदान करता हैं कि वो अपने विरोध गवाही ना दे तथा दोहरे दंड से सुरक्षा प्रदान करता हैं।
संविधान का अनुच्छेद 20 और 21 क्या है?
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 20 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 20) और अनुच्छेद 21 भारत के नागरिकों के स्वतंत्रता के अधिकार से सम्बन्धित हैं जिनको आपातकाल की स्थिति में भी निलंबित नहीं किया जा सकता।
अनुच्छेद 20 और 22 में क्या अंतर है?
जहां भारतीय संविधान का अनुच्छेद 20 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 20) नागरिकों के दोषसिद्धि अधिकार से सम्बन्धित बात करता हैं वहीं अनुच्छेद 22 खास मामलों में हिरासत से सुरक्षा के संबध में बात करता हैं।
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