भारतीय संविधान का अनुच्छेद 22 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 22)

नमस्कार, मेरे पुराने पाठकों का मेरे ब्लॉग (Free Padhai) पर वापिस स्वागत हैं। अब तक हम भारतीय संविधान के 21 अनुच्छेदों के बारे में विस्तार से पढ़ चुके हैं। मुझे उम्मीद है कि आपको उन सभी अनुच्छेदों के बारे में विस्तार से जानकारी मिली होगी और आपने इनके नोट्स भी तैयार कर लिए होंगे। आज हम उसके आगे भारतीय संविधान का अनुच्छेद 22 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 22) के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे तो बिना समय गंवाए आज की पढ़ाई शुरू करते हैं।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 22 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 22)

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 22 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 22)

परिचय

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 22 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 22) एक मौलिक अधिकार है जो गैरकानूनी गिरफ्तारी और हिरासत से व्यक्तियों की रक्षा प्रदान करता हैं। साथ ही भारतीय संविधान का अनुच्छेद 22 यह भी सुनिश्चित करता है कि व्यक्तियों को उनकी गिरफ्तारी के कारणों के बारे में सूचित किया जाए और उन्हें कानूनी प्रतिनिधित्व और निष्पक्ष मुकदमे का अधिकार मिले।

गिरफ्तारी और निरोध से सरंक्षण

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 22 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 22) का खण्ड 1 कहता है कि जिस भी व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया हैं, उसे हिरासत में बिना किसी देरी के गिरफ्तारी के कारणों के बारे में सूचित किए जाना ज़रूरी हैं क्योंकि यह उसका मौलिक अधिकार हैं। इसका मतलब है कि पुलिस या गिरफ्तारी करने वाले अधिकारी को गिरफ्तार व्यक्ति को जल्द से जल्द गिरफ्तारी के कारणों के बारे में बताना अनिवार्य हैं।

यह मनमानी गिरफ्तारी और हिरासत के खिलाफ एक महत्वपूर्ण सुरक्षा है, क्योंकि इसके द्वारा यह सुनिश्चित किया गया है कि व्यक्तियों को उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों के बारे में जानकारी हो और वे अपनी रक्षा की तैयारी कर सकें यानी की वकील से अपने आप को सही साबित करने के लिए धाराओं के बारे में विचार विमर्श कर सकें। साथ ही अनुच्छेद 22 कहता हैं की इन अधिकारों से किसी भी व्यक्ति को वंचित नहीं किया जाएगा।

मजिस्ट्रेट के समक्ष पेशी

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 22 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 22) का खंड 2 कहता है कि प्रत्येक गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के स्थान से निकटतम मजिस्ट्रेट की अदालत तक की यात्रा के समय को छोड़कर गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर निकटतम मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाना चाहिए। इसका मतलब है कि पुलिस या गिरफ्तारी करने वाले अधिकारी को गिरफ्तार व्यक्ति को उनकी गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना होगा। लेकिन यहां पर यह बात ध्यान में रखना जरूरी हैं की जिन 24 घंटो की बात हो रही हैं वो न्यायालय के कार्य शुरू होने के समय से शुरू माना जायेगा।

गिरफ्तार व्यक्ति को न्यायालय में पेश करने पर मजिस्ट्रेट आधारों की समीक्षा कर सके और यह निर्धारित कर सके कि हिरासत कानूनी है या नहीं। यानी की जिस व्यक्ति की गिरफ़्तारी हुई हैं वो व्यक्ति जिसे गिरफ्तार करना था वो ही हैं या कोई और। उसके बाद न्यायालय द्वारा निर्धारित किए गए समय तक उस व्यक्ति को हिरासत में भेजा जाता हैं।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 22 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 22) यह भी कहता है कि किसी भी व्यक्ति को मैजिस्ट्रेट के आदेश के बिना 24 घंटे की अवधि से अधिक हिरासत में नहीं रखा जाएगा। इसका मतलब है कि यदि पुलिस या गिरफ्तारी करने वाला अधिकारी व्यक्ति को 24 घंटे से अधिक हिरासत में रखना चाहता है, तो उसे मजिस्ट्रेट की अनुमति लेनी होगी। ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हिरासत कानूनी है और व्यक्ति को मनमाने ढंग से नहीं रखा जा रहा है।

अनुच्छेद 22 के अपवाद

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 22 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 22) कहता हैं की निम्न परिस्थितियों में गिरफ्तार व्यक्ति को मैजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करना जरूरी नहीं होगा यदि:-

(a) यदि गिरफ्तार व्यक्ति किसी दुश्मन देश का नागरिक हो। यानी जो व्यक्ति देश विरोधी गतिविधियों के तहत गिरफ्तार हुआ है उसे 24 घंटो में मैजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करना जरूरी नहीं हैं

(b) यदि गिरफ्तार व्यक्ति को निवारक निरोध की तहत गिरफ्तार किया गया हो। यानी किसी व्यक्ति की वजह से भविष्य में लड़ाई दंगा होने की संभावना थी उसे गिरफ्तार किए गया हैं तो उस व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करना जरूरी नहीं हैं।

निवारक निरोध

यहां पर हमे यह जानना जरूरी हैं कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 22 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 22) जिस निवारक निरोध की बात करता हैं आखिरकार वो होता क्या हैं। यहां निवारक निरोध के तहत गिरफ्तारी का मतलब ऐसे व्यक्ति की गिरफ़्तारी से हैं जिसकी वजह से भविष्य में लड़ाई दंगा हो सकता हैं। ऐसे व्यक्ति को हिरासत में या घर पर ही नजरबंद किया जा सकता हैं वहां उस व्यक्ति को सारी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं।

निवारक निरोध के लिए कानून

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 22 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 22) के अनुसार निवारक निरोध की तहत गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को अधिकतम तीन महिने के लिए डिटेन करके रखा जा सकता हैं। यदि उस व्यक्ति को तीन महीनों से ज्यादा डिटेन करना जरूरी हैं तो उसको लिए एक कमेटी का गठन किया जाएगा और वो कमेटी निर्णय लेगी की उसको कितने दिनों तक डिटेन करके रखना हैं।

यदि हम भारतीय संविधान का अनुच्छेद 22 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 22) जिस निवारक निरोध की बात करता हैं उसका अभी का उदाहरण देखें तो अनुच्छेद 370 के निरस्त के समय जम्मू कश्मीर में राजनेताओं के ऊपर लगाया गया डिटेन सबसे अच्छा उदाहरण हैं।

निष्कर्ष

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 22 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 22) गैरकानूनी गिरफ्तारी और हिरासत के खिलाफ एक महत्वपूर्ण सुरक्षा है। यह सुनिश्चित करता है कि व्यक्तियों को उनकी गिरफ्तारी के कारणों के बारे में सूचित किया जाए, उन्हें कानूनी प्रतिनिधित्व का अधिकार मिले, और उन्हें समय पर मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाए। ये सुरक्षा कानून के शासन को बनाए रखने और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है

आपके सवाल

अनुच्छेद 22 में क्या कहा गया

है?

या

अनुच्छेद 22 क्या कहता है?

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 22 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 22) गैरकानूनी गिरफ्तारी और हिरासत के खिलाफ एक महत्वपूर्ण सुरक्षा है। यह सुनिश्चित करता है कि व्यक्तियों को उनकी गिरफ्तारी के कारणों के बारे में सूचित किया जाए, उन्हें कानूनी प्रतिनिधित्व का अधिकार मिले, और उन्हें समय पर मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाए।

अनुच्छेद 20 और 22 में क्या अंतर है?

जहां भारतीय संविधान का अनुच्छेद 20 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 20) नागरिकों के दोषसिद्धि अधिकार से सम्बन्धित बात करता हैं वहीं भारतीय संविधान का अनुच्छेद 22 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 22) खास मामलों में हिरासत से सुरक्षा के संबध में बात करता हैं।

संविधान के अनुच्छेद 22 में प्रत्येक गिरफ्तार व्यक्ति को क्या अधिकार दिए गए हैं?

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 22 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 22) के अनुसार गिरफ्तार व्यक्ति को उसके गिरफ्तार होने का कारण पता होना चाहिए। साथ ही गिरफ्तार व्यक्ति को 24 घंटो के अंदर अंदर निकटतम मजिस्ट्रेट न्यायालय में पेश किया जाना जरूरी हैं यह उसका मौलिक अधिकार है।

नजरबंदी कानून क्या है?

नजरबंदी कानून को निवारक निरोध के नाम से भी जाना जाता हैं। इस कानून के तहत किसी को भी अपराध करने पर गिरफ्तार नहीं किया जाता बल्कि इस कानून के तहत भविष्य में होने वाले अपराध को रोकने के लिए गिरफ्तारी कि जाती हैं।

निवारक निरोध पर कानून कौन बना सकता हैं?

भारत के संविधान के द्वारा निवारक निरोध के ऊपर देश की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए भारत की संसद को कानून बनानी की शक्ति प्रदान की गई हैं।

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