भारतीय संविधान का अनुच्छेद 17 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 17)

नमस्कार, मेरे पुराने पाठकों का मेरे ब्लॉग (Free Padhai) पर वापिस स्वागत हैं। अब तक हम भारतीय संविधान के 16 अनुच्छेदों के बारे में विस्तार से पढ़ चुके हैं। मुझे उम्मीद है कि आपको उन सभी अनुच्छेदों के बारे में विस्तार से जानकारी मिली होगी और आपने इनके नोट्स भी तैयार कर लिए होंगे। आज हम उसके आगे भारतीय संविधान का अनुच्छेद 17 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 17) के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे तो बिना समय गंवाए आज की पढ़ाई शुरू करते हैं।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 17 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 17)

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 17 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 17)

परिचय

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 17 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 17) भारत के संविधान में एक महत्वपूर्ण प्रावधान है जो अनुसूचित जातियों के साथ हो रही अस्पृश्यता जैसी सामाजिक कुरीति को खत्म करता है। अस्पृश्यता शताब्दियों से भारतीय समाज को प्रभावित करती आ रही है। यह प्रावधान सामाजिक समानता और न्याय को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, और संविधान की सामाजिक कल्याण और मानवाधिकारों के प्रति प्रतिबद्धता का प्रमाण है।

अस्पृश्यता की परिभाषा

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 17 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 17) जिसकी बात करता हैं वो है अस्पृश्यता इसलिए सबसे पहले हमें यह जान लेना चाहिए की अस्पृश्यता होता क्या हैं। वैसे तो संविधान में अस्पृश्यता को परिभाषित नहीं किया गया हैं। लेकिन यदि हम अस्पृश्यता को परिभाषित करने की कोशिश करें तो अस्पृश्यता वो बीमारी हैं जिसको अनुसूचित जातियों के लोग अपने जन्म से ही साथ लेकर पैदा होते हैं। जिसके कारण उनको पूरी ज़िंदगी उत्पीड़ना झेलनी पड़ती हैं। इस उत्पीड़ना का शिकार हमारे देश के संविधान निर्माता डॉ भीमराव अंबेडकर भी हुवे उन्हें स्कूल के अंदर पानी पीने के लिए लगे नल को स्पर्श करने की आजादी नहीं थी। यदि उनको पानी पीना होता था तो उन्हे किसी उच्च जाति के व्यक्ति द्वारा उस नल को खुलवाना पड़ता था।

अस्पृश्यता का इतिहास

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 17 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 17) जिस अस्पृश्यता की बात करता है उसकी जड़े भारतीय समाज में सदियों से प्रचलित जाति व्यवस्था में हैं। अस्पृश्यता को सामाजिक नीतियों, धार्मिक विश्वासों, और राजनीतिक शक्ति संरचनाओं द्वारा बढ़ावा मिलता रहा। प्राचीन काल से ही जाति व्यवस्था का उपयोग सामाजिक वर्गीकरण को और भी मजबूत करने के लिए किया जाता रहा, जिसमें अछूत समुदायों को समाज के निचले भाग में दबाकर रख दिया। अस्पृश्यता का अभ्यास को धार्मिक पाठ्यक्रमों, सामाजिक परंपराओं, और राजनीतिक शक्ति संरचनाओं द्वारा मजबूत किया गया। जिसके कारण धीरे धीरे इसने एक कुरीति का रूप धारण कर लिया।

अस्पृश्यता का उन्मूलन

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 17 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 17) भारत में “अस्पृश्यता” समाप्त करने का दावा करता हैं और साथ ही यह भी कहा की इसका किसी भी रूप में अभ्यास अपराध माना जायेगा और जो इसका अभ्यास करेगा उसके ऊपर कानूनी कार्रवाई होगी। यह प्रावधान उन समुदायों के लिए था जिन्होंने सदियों से अस्पृश्यता की प्रताड़ना झेली थी तथा उन समुदायों के सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक अलगाव को समाप्त करने के उद्देश्य से भारत के संविधान में अनुच्छेद 17 को जोड़ा गया। अस्पृश्यता की समाप्ति सामाजिक समानता और न्याय को बढ़ावा देने की एक महत्वपूर्ण कदम है, और यह अनुच्छेद उन समुदायों को जिन्होंने सदियों से अस्पृश्यता की प्रताड़ना झेली हैं को अस्पृश्यता का अभ्यास करने वालों के खिलाफ़ अपनी आवाज उठा सके के लिए इसको मौलिक अधिकारों के रुप में संविधान में मान्यता दी।

अस्पृश्यता के उन्मूलन का असर

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 17 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 17) जिस अस्पृश्यता के उन्मूलन की बात करता हैं उसका भारतीय समाज में बहुत गहरा असर पड़ा। अस्पृश्यता के उन्मूलन से समाज में सामाजिक समानता को बढ़ावा मिला, लोगों के साथ जन्म के आधार पर होने वाला भेदभाव समाप्त हुआ, कमजोर समुदायों को सशक्त बनाया गया, और साथ ही यह समावेशी समाज को प्रोत्साहित करता हुआ प्रतीत होता हैं। अस्पृश्यता के उन्मूलन से समाज में हलचल तो जरूर मची लेकीन धीरे धीरे समाज के लोगों की सोच बदली और यह सोच ही बदलाव का कारण बनी।  

चुनौतियाँ

जब भारतीय संविधान का अनुच्छेद 17 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 17) अस्पृश्यता के उन्मूलन की बात करता है तो उन लोगों को तकलीफ होने लगी जिन्होंने इस कुरीति को जन्म दिया या ऐसे कहे इस अनुच्छेद से उन लोगों को तकलीफ होने लगी जिनकी सोच की गहराई तक अस्पृश्यता ने अपनी जड़े जमा रखी थी। उन लोगों ने इसको सामाजिक नियमों, धार्मिक धारणाओं, और राजनीतिक शक्ति संरचनाओं को चुनौती देने वाला माना, जिसने अस्पृश्यता की प्रथा को मजबूत किया है। लेकीन धीरे धीरे अस्पृश्यता के उन्मूलन से, भारतीय समाज के एक बहुत बड़े तबके को आजादी से जीने का अधिकार मिला।

राज्य की भूमिका

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 17 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 17) राज्य की भूमिका को जोर देता है और कहता हैं की राज्य की जिम्मेदारी बनती हैं की सभी नागरिकों को सामाजिक न्याय मिले, समानता का अधिकार मिले और राज्य कमजोर समुदायों के अधिकारों की सुरक्षा करे। राज्य का जिम्मेदारी है कि राज्य सुनिश्चित करे की कमजोर समुदायों को शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य सेवाएं, और अन्य मौलिक अधिकारों और अवसरों तक पहुंच मिले। राज्य को धार्मिक और सामाजिक पूर्वाग्रहों को भी चुनौती देना है, जो भेदभाव और बहिष्कार को बनाए रखना चाहते हैं।

प्रवर्तन और कार्यान्वयन

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 17 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 17) संविधान में इसलिए जोड़ा गया ताकि सामाजिक न्याय और समानता को बढ़ावा मिले। सामाजिक न्याय और समानता को बढ़ावा देने के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए कानूनों और नीतियों के प्रभावी प्रवर्तन और कार्यान्वयन महत्वपूर्ण है। इसके लिए मजबूत राजनीतिक प्रतिबद्धता, प्रभावी शासन, और नागरिक समाज संगठनों और कमजोर समुदायों की सक्रिय भागीदारी की आवश्यकता है।

निष्कर्ष

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 17 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 17) भारत के संविधान का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है जो अस्पृश्यता की प्रथा को समाप्त करता है और सामाजिक समानता और न्याय को बढ़ावा देता है। इसके प्रभाव भारतीय समाज में देखने को मिले। जैसे – इससे एक समावेशी समाज को आगे बढ़ने की आजादी मिली, कमजोर समुदायों को सशक्त बनाया गया और जो लोगों अस्पृश्यता को समाज से निकलना नहीं चाहते थे उनके दृष्टिकोण में भी बड़ा बदलाब देखने को मिला। राज्य ने अस्पृश्यता को मजबूती से लागू करने के लिए प्रभावी कानून बनाए और उन कानूनों को कठोरता से लागू करने में अपनी भूमिका बखुबी निभाई। जिससे भारतीय समाज का एक बहुत बड़ा तबका जो जन्म से ही एक ऐसी कुरीति का सामना करता आ रहा था जिसमे उसका कोई हाथ नहीं था को अनुच्छेद 17 के रूप में अपना अधिकार मिला जिससे यह लोग अपनी आवाज को बुलंद कर पाए।

आपके सवाल

अनुच्छेद 17 में क्या है?

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 17 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 17) अस्पृश्यता के उन्मूलन की बात करता हैं। अस्पृश्यता वो बीमारी थी जिसके कारण भारतीय समाज का एक बहुत बड़ा तबका दुखी रहता था।

अनुच्छेद 17 बहुत महत्वपूर्ण क्यों है?

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 17 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 17) इसलिए और ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता हैं क्योंकि यह अनुच्छेद भारतीय समाज के एक बहुत बड़े तबके को अस्पृश्यता के खिलाफ लड़ने के लिए मौलिक अधिकार प्रदान करता हैं। जिससे भारतीय समाज के एक कमज़ोर वर्ग की ज़िंदगी में एक बड़ा परिवर्तन देखने को मिलता हैं।

अनुच्छेद 17 और 18 में क्या है?

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 17 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 17) जहां अस्पृश्यता के उन्मूलन की बात करता हैं वहीं भारतीय संविधान का अनुच्छेद 18 उपाधियों के उन्मूलन की बात करता हैं।

छुआछूत का अंत कब हुआ?

छुआछूत यानी की अस्पृश्यता का अंत तब हुआ जब भारतीय संविधान का अनुच्छेद 17 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 17) सन् 1950 ने भारतीय संविधान का हिस्सा बना।

छुआछूत के लिए कौन सी धारा लगती है?

छुआछूत की बीमारी को भारतीय समाज से निकाल फैंकने की दिशा में भारतीय संविधान का अनुच्छेद 17 काम करता हैं। उनको प्रभावी रूप से समाज में लागू करने के लिए राज्य द्वारा कानून बनाए गए। उन कानून की धाराएं छुआछूत का अभ्यास करने वाले लोगों पर लगती हैं।

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