भारतीय संविधान का अनुच्छेद 18 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 18)

नमस्कार, मेरे पुराने पाठकों का मेरे ब्लॉग (Free Padhai) पर वापिस स्वागत हैं। अब तक हम भारतीय संविधान के 17 अनुच्छेदों के बारे में विस्तार से पढ़ चुके हैं। मुझे उम्मीद है कि आपको उन सभी अनुच्छेदों के बारे में विस्तार से जानकारी मिली होगी और आपने इनके नोट्स भी तैयार कर लिए होंगे। आज हम उसके आगे भारतीय संविधान का अनुच्छेद 18 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 18) के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे तो बिना समय गंवाए आज की पढ़ाई शुरू करते हैं।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 18 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 18)

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 18 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 18)

परिचय

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 18 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 18) भारत के संविधान का एक महत्वपूर्ण प्रावधान हैं। जो वंश के आधार पर चली आ रही उपाधियों को समाप्त करता हैं और साथ ही राज्य को किसी भी नागरिक को ऐसी उपाधि देने से रोकता हैं जो आगे चल कर पीढ़ी दर पीढ़ी चलने लगे। भारत के संविधान निर्माताओं के द्वारा इस प्रावधान को संविधान में देश के नागरिकों में समानता लाने के उद्देश्य से जोड़ा गया क्योंकि इससे पहले जिन लोगों ने अंग्रेजों के द्वारा दी गई उपाधि धारण कर रखी थीं वो उपाधि पीढ़ी दर पीढ़ी चलती आ रही थी यानी महाराजा का बेटा महाराजा ही कहलाता था जिसके कारण संविधान निर्माताओं को लगा की इस वजह से आजाद भारत में आम नागरिकों का समानता के आधिकार का हनन हो रहा हैं। यदि हम इन बातों पर गौर करे तो उपाधियों की समाप्ति भारत के लोकतांत्रिक संरचना के लिए महत्वपूर्ण पहलू है।

उपाधियों का उन्मूलन

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 18 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 18) का खण्ड 1 सैन्य और शैक्षिक उपाधियों को छोड़कर सभी उपाधियों को समाप्त करता हैं। जिसका मतलब यह हुआ कि अब कोई भी नागरिक अंग्रेजों द्वारा दी गई उपाधियां (जैसे – राई बहादुर, खान बहादुर और महाराजा) धारण नहीं कर सकता। साथ ही यह भी सुनिश्चित किया गया की राज्य भी इस प्रकार की कोई भी उपाधि अपने नागरिकों नहीं देगा। अंग्रेजों द्वारा दी गई उपाधियां सामाजिक वर्ग प्रणालियों को बनाए रखती थी इसलिए नागरिकों के समानता के आधिकार के लिए इनको समाप्त करना आवश्यक था। उपाधियों की समाप्ति देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था को और मजबूत करने वाला कदम था।

विदेशी उपाधियों को स्वीकार करने पर प्रतिबंध

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 18 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 18) का खण्ड 2 भारत के नागरिकों को दुसरे देश से उपाधि स्वीकार करने पर रोक लगता हैं। अब आपके मन में यह सवाल जरुर आया होगा की संविधान निर्माताओं ने आखिरकार इस प्रावधान को भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार के हिस्से में क्यों जोड़ा? संविधान निर्माताओं के द्वारा ऐसा करने के पीछे कुछ कारण थे जो इस प्रकार हैं। (1) संविधान निर्माताओं को लगता था की यदि आजाद भारत का कोई नागरिक किसी भी दुसरे देश से उपाधि धारण करता हैं तो भारतीय समाज में फिर से वो ही स्थिति बन जायेगी जो पहले थी और आम नागरिकों का समानता के आधिकार का हनन होगा। (2) संविधान निर्माताओं को यह भी डर था कि यदि कोई नागरिक दुसरे देश से उपाधि धारण करता हैं तो वो व्यक्ति उस देश के प्रभाव में आ सकता हैं जिससे उस व्यक्ति की देश के प्रति वफादारी पर प्रश्न उठता हैं। संविधान निर्माताओं ने नागरिकों के समानता के अधिकार का भी हनन ना हो और ना ही देश की संप्रभुता पर कोई खतरा पैदा हो को ध्यान में रखते हुए इस प्रावधान को संविधान में मौलिक अधिकार के रुप में जोड़ा।

अनुच्छेद 18 का अपवाद

एक तरफ जहां भारतीय संविधान का अनुच्छेद 18 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 18) उपाधियों पर रोक लगाता हैं वहीं दुसरी तरफ सैन्य और शैक्षिक क्षेत्र में उपाधियां देने की बात करता हैं। साथ ही राज्य अपने नागरिकों को उपाधियां भी देता हैं जैसे की परमवीर चक्र, भारत रत्न, और पद्म श्री इत्यादि। जो की भारत के संविधान के अनुच्छेद 18 का उल्लंघन करता हुआ प्रतीत होता हैं लेकीन इस पर बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने व्याख्या कि की यह उपाधियां पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाली नहीं हैं इसलिए यह उपाधियां ना तो अनुच्छेद 18 का उल्लंघन करती हैं और ना ही नागरिकों के समानता के आधिकार का हनन करती हैं।

विदेशी उपहार स्वीकार करने पर रोक

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 18 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 18) का खण्ड 4 ऐसे लोगों के लिए हैं जिनकी भारत की वजह से आमदनी होती हैं। इस खण्ड के अनुसार ऐसे व्यक्ति किसी भी देश से किसी भी प्रकार का उपहार नहीं ले सकते। यदि उन्हें वो उपहार स्वीकार करना हैं तो उन्हें भारत के राष्ट्रपति से अनुमति लेना अनिवार्य हैं। इस प्रावधान को संविधान में जोड़ने के पीछे उद्देश्य था की भ्रष्टाचार ना बढ़े उस पर रोक लगे और यह सुनिश्चित किया गया की विदेशी उपहार के प्रभाव में आकर कोई व्यक्ति भारत की संप्रभुता के लिए खतरा पैदा ना करें।

अनुच्छेद 18 का महत्त्व

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 18 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 18) का भारत जैसे लोकतांत्रिक देश के बहुत महत्त्व हैं। इस अनुच्छेद के प्रावधानों से भारत के समाज में समानता के आधिकार को प्रोत्साहन मिला और समाज का विभाजन करने वाली परंपराओं का अंत हुआ। इस अनुच्छेद के प्रावधानों के माध्यम से उन शक्तियों को उभरने से रोका गया, जो आगे चलकर देश के लोकतंत्र के लिए खतरा बन सकती थी। इसके अलावा, इस अनुच्छेद द्वारा निजी पद पर बैठे व्यक्तियों को विदेशी उपहारों और पदोन्नतियों को स्वीकार करने पर रोक लगा कर विदेशों की वजह से भारत में बढ़ने वाले भ्रष्टाचार पर रोक लगाने की कोशिश की गई।

निष्कर्ष

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 18 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 18) भारतीय संविधान के समानता के उद्देश्य को पूरा करने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रावधान है जो अंग्रेजों द्वारा दी गई उपाधियों को समाप्त करता है तथा साथ ही राज्य को नागरिकों को उपाधियां प्रदान करने से रोकता है। यह अनुच्छेद समानता के आधिकार को प्रोत्साहित करता है और उपाधियों के कारण उत्पन्न हुए सामाजिक वर्ग व्यवस्था को खत्म करने का काम करता हैं। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 18 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 18) यह भी सुनिश्चित करता है कि सार्वजनिक अधिकारी किसी भी तरह से भारत की संप्रभुता को क्षति ना पहुंचाए। उपाधियों की समाप्ति और विदेशी उपाधियों व भेंट को स्वीकार करने पर प्रतिबंध भारत के लोकतांत्रिक संरचना के महत्वपूर्ण पहलु हैं। भारत के संविधान के इस प्रावधान ने देश के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

आपके सवाल

अनुच्छेद 18 में क्या है?

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 18 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 18) भारतीय नागरिकों को अंग्रेजों द्वारा मिली उपाधियों को ख़त्म करने की बात करता हैं और यह सुनिश्चित करता हैं राज्य अपने नागरिकों को ऐसी कोई भी उपाधि प्रदान ना करे जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलने लगे। इसके अलावा भारतीय संविधान का अनुच्छेद 18 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 18) दुसरे देशों से उपाधियां या भेट लेने पर भी रोक लगाता हैं।

अनुच्छेद 17 और 18 में क्या अंतर है?

जहां भारत के संविधान के अनुच्छेद 17 में अस्पृश्यता के उन्मूलन की बात कहीं गई हैं वहीं भारतीय संविधान का अनुच्छेद 18 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 18) उपाधियों के उन्मूलन की बात करता हैं।

अनुच्छेद 18 में कितने खंड हैं?

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 18 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 18) चार खंडों में बटा हुआ। इन सभी खंडों को ऊपर समझाया गया आप वो पढ़ सकते हैं।

अनुच्छेद 18 के अनुसार कौन सी उपाधियाँ प्रतिबंधित हैं और क्यों?

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 18 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 18) सैन्य और शैक्षिक उपाधियों को छोड़ कर सभी उपाधियों को प्रतिबंधित करता हैं। विशेष कर अंग्रेजों द्वारा दी गई सभी उपाधियां (जैसे कि राय बहादुर और महाराजा) को समाप्त करता हैं क्योंकि यह उपाधियां पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाली उपाधियां थी जिसकी वजह से देश की आम जनता के समानता के आधिकार का हनन हो रहा था। दूसरा संविधान निर्माताओं को लगता था की इन उपाधियों के कारण देश के लोकतंत्र के लिए खतरा उत्पन्न हो सकता हैं।

अनुच्छेद 14 से 18 तक किसके बारे में बात करते हैं?

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 से अनुच्छेद 18 तक समानता के आधिकार की बात कही गई हैं। जोकि एक मौलिक अधिकार हैं।

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