भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 21)

नमस्कार, मेरे पुराने पाठकों का मेरे ब्लॉग (Free Padhai) पर वापिस स्वागत हैं। अब तक हम भारतीय संविधान के 20 अनुच्छेदों के बारे में विस्तार से पढ़ चुके हैं। मुझे उम्मीद है कि आपको उन सभी अनुच्छेदों के बारे में विस्तार से जानकारी मिली होगी और आपने इनके नोट्स भी तैयार कर लिए होंगे। आज हम उसके आगे भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 21) के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे तो बिना समय गंवाए आज की पढ़ाई शुरू करते हैं।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 21)

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 21)

परिचय

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 21) नागरिकों का एक मौलिक अधिकार है जो नागरिकों के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए अधिकार प्रदान करता हैं। यह भी सुनिश्चित करता हैं कि किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया (इस प्रक्रिया में संविधान को सर्वोपरि माना जाता हैं) के अलावा अपने जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता।

अब सवाल आता हैं की आखिरकार भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 21) जिस विधि द्वारा स्थापित प्रणाली की बात करता हैं वो होती क्या हैं? यदि हम इसको आसान भाषा में समझने की कोशिश करें तो इसका मतलब होता हैं 👉कानून बनाने की प्रक्रिया में कानून बनाने की शक्ति संसद के पास होती हैं लेकिन कानून संविधान के अनुरूप बना हैं या नहीं यह देखने की शक्ति सर्वोच्च न्यायालय के पास हैं।

जिसके अनुसार यदि सर्वोच्च को लगाता हैं संसद द्वारा बनाया गया कानून संविधान के अनुरूप नहीं हैं तो सर्वोच्च न्यायालय उस कानून पर रोक लगा सकता हैं या फिर उस कानून को रद्द भी कर सकता हैं। इसलिए इस प्रणाली में संविधान सर्वोपरि माना जाता हैं।

जीवन का अधिकार

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 21) सभी व्यक्तियों (पुरुष, महिला या फिर विदेशी) को प्राण और दैहिक सुरक्षा के रुप में मौलिक अधिकार प्रदान करता हैं जिसके अनुसार राज्य या कोई और किसी भी व्यक्ति को ना तो उसके शरीर को हानि पहुंचा सकता हैं और ना ही उसका जीवन समाप्त कर सकता हैं।

यहां सवाल उठता हैं कि यदि व्यक्ति का यह मौलिक अधिकार है तो किसी भी अपराधी को फांसी की सजा सुनाई ही नहीं जा सकती। इसके लिए संविधान निर्माताओं ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 21) में ही जोड़ दिया की किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रणाली द्वारा जीवन से वंचित किया जा सकता हैं।

जीने के अधिकार की परिभाषा

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 21) इस अधिकार को परिभाषित नहीं करता हैं या हम यह कह सकते हैं की संविधान में इसकी कोई व्याख्या नहीं हैं। जब संविधान में इसकी व्याख्या कोई नहीं हैं तो इसकी व्याख्या देने या करने का काम हैं सर्वोच्च न्यायालय का। सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 21 की अलग अलग मामलों में कई बार व्याख्या दी है जो निम्न हैं:-

ए के गोपालन बनाम मद्रास राज्य

भारतीय कम्यूनिस्ट राजनेता ए के गोपालन को मद्रास सरकार ने सन् 1950 में निरोध निवारण कानून की तहत गिरफ्तार कर लिया तब गोपालन ने कहा की भारतीय संविधान का अनुच्छेद (Bhartiya savidhan ka anuchhed 21) जिस आजादी की बात करता हैं उसका हनन हुआ। इस पर न्यायालय ने कहा कि यह सब एक कानून की तहत हुआ हैं इसलिए यहां अनुच्छेद 21 का उल्लंघन नहीं माना जा सकता।

साथ ही न्यायालय ने यह भी का अनुच्छेद 21 किसी भी व्यक्ति को सीमित जीवन जीने का अधिकार प्रदान करता हैं।

मेनका गांधी बनाम भारत संघ

इस केस के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने माना की भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 (bhatiya savidhan ka anuchhed 21) का मतलब सीमित जीवन जीने के अधिकार से ना हो कर गरिमापूर्ण जीवन जीने के अधिकार से हैं।

अनुच्छेद 21 के छिपे अधिकार

मेनका गांधी केस के बाद न्यायालय ने कई अन्य बातों को भी माना जैसे:-

–  मानवीय प्रतिष्ठा के अनुसार जीने का अधिकार

– जीवन रक्षा का अधिकार

– निजता का अधिकार

– आश्रय का अधिकार

– शुद्ध पर्यावरण में रहने का अधिकार

– स्वास्थ्य का अधिकार

– 14 साल से कम उम्र के बच्चों को शिक्षा का अधिकार

– निशुल्क कानूनी सहायता का अधिकार

– त्वरित सुनवाई का अधिकार

– हथकड़ी लगाने के विरुद्ध अधिकार

– अमानवीय व्यवहार के विरुद्ध अधिकार

– अकेले कारावास में रहने के विरुद्ध अधिकार

– विदेश यात्रा का अधिकार (मेनका गांधी से संबंधित)

– बंधुआ मजदूरी के विरुद्ध अधिकार

– आपातकालीन चिकित्सा सुविधा का अधिकार

– देर से फांसी के विरुद्ध अधिकार

– हिरासत में शोषण के विरुद्ध अधिकार

– सरकारी अस्पताल में उचित ईलाज का अधिकार

– महिलाओं के साथ समान और आदरपूर्ण व्यवहार का अधिकार

– सार्वजनिक फांसी के विरुद्ध अधिकार

– निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार

– कैदी के लिए जीवन की आवश्यकताओं का अधिकार

– सूचना का अधिकार

– सुनवाई का अधिकार

– प्रतिष्ठा का अधिकार

– सामाजिक सुरक्षा का अधिकार

– परिवार के सरक्षण का अधिकार

– शयन का अधिकार

– सामाजिक और आर्थिक न्याय के सशक्तिकरण का अधिकार इत्यादि।

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा की यह सभी अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 21) के अंदर ही छिपे हुए हैं जो की किसी भी व्यक्ति के लिए गरिमा पूर्ण जीवन जीने के लिए ज़रूरी हैं।

अन्य अधिकार

आत्म हत्या का अधिकार

भारतीय दंड संहिता की धारा 309 के अनुसार आत्म हत्या एक अपराध की श्रेणी में आता हैं। रविनाथ बनाम भारत संघ केस में न्यायालय ने माना की आत्म हत्या व्यक्ति का अधिकार हैं। लेकिन ज्ञान कौर बनाम पंजाब राज्य केस में न्यायालय ने कहा की किसी भी व्यक्ति के पास जीने का अधिकार तो हैं लेकिन आत्म हत्या अपराध के श्रेणी में आयेगा। अर्थात् आत्म हत्या व्यक्ति का जीवन का अधिकार नहीं हैं।

दया मृत्यु

सबसे पहले हमें यह जान लेना जरूरी हैं की आखिर दया मृत्यु होती क्या हैं। कोई भी व्यक्ति असाध्य रोग से पीड़ित हैं तथा वो अपने इच्छा से मरना चाहता हैं और उसे मृत्यु दी जाती है तो वो दया मृत्यु की श्रेणी में आता हैं।

इससे सम्बन्धित 2011 में एक केस हुआ जो था अरुणा रामचंद्र शानबाग बनाम भारत संघ। जिसमें न्यायालय द्वारा कहा गया की दया मृत्यु दो प्रकार की होती हैं। (1) सक्रिय दया मृत्यु जो की अवैध हैं। सक्रिय दया मृत्यु में असाध्य रोग से पीड़ित व्यक्ति को ऐसी दवाई दी जाती हैं जिससे उसकी मृत्यु हो जाए।

(2) निष्क्रिय दया मृत्यु जो वैध हैं लेकिन उससे पहले न्यायालय की बैंच पुरे मामले की जांच करेगी। निष्क्रिय दया मृत्यु में रोगी को मरने के लिए कोई दवा नहीं दी जाती केवल जिन संसाधनों के सहारे वो जी रहा था वो हटा लिए जाते हैं।

अनुच्छेद 21A (शिक्षा का अधिकार)

जब भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 21) बनाया गया तब उसमें शिक्षा का अधिकार शामिल नहीं था। शिक्षा के अधिकार को 21A की तहत 82 वें संविधान संशोधन के द्वारा 2002 में संविधान में जोड़ा गया।

शिक्षा के अधिकार के तहत राज्य 14 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए कानून बना कर निशुल्क शिक्षा की व्यवस्था करेगा। इस विषय को समवर्ती सूची में रखा गया। यहां मैं आपको बता देता हूं समवर्ती सूची के अंतर्गत आने वाले विषयों पर राज्य सरकार और केंद्र सरकार दोनों कानून बना सकती हैं।

भारत सरकार ने शिक्षा के अधिकार से सम्बन्धित कानून सन् 2010 में बनाया और लागू किया यह कानून भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 21) को ध्यान में रखकर ही बनाया गया।

निष्कर्ष

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 21) प्रत्येक व्यक्ति के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इस अनुच्छेद द्वारा संविधान ने व्यक्तियों को जीवन जीने के लिए मौलिक अधिकार प्रदान किया हैं। यह अनुच्छेद विदेशी नागरिकों के लिए भी हैं। अनुच्छेद 21 यह भी सुनिश्चित करता हैं की राज्य कोई भी ऐसा कानून ना बनाएं जिससे नागरिकों की स्वतंत्रता का उल्लंघन हो।

आपके सवाल

संविधान के आर्टिकल 21 में क्या है?

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 21) नागरिकों का एक मौलिक अधिकार है जो नागरिकों के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए अधिकार प्रदान करता हैं। साथ ही यह भी सुनिश्चित करता हैं किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया (इस प्रक्रिया में संविधान को सर्वोपरि माना जाता हैं) के अलावा अपने जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता।

अनुच्छेद 21A में क्या है?

अनुच्छेद 21A शिक्षा के अधिकार की बात करता हैं।

अनुच्छेद 21 और 20 क्या है?

जहां भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 21) नागरिकों के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की बात करता हैं वहीं अनुच्छेद 20 आरोपित अपराधियों की सुरक्षा की बात करता हैं।

अनुच्छेद 21 और 22 क्या है?

जहां भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 (Bhartiya savidhan ka anuchhed 21) नागरिकों के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की बात करता हैं वहीं अनुच्छेद 22 खास मामलों में हिरासत से सम्बन्धित हैं।

शिक्षा के अधिकार से सम्बन्धित कानून कब लागू हुआ?

अनुच्छेद 21A को संविधान का हिस्सा बनाने के बाद भारत सरकार ने शिक्षा के अधिकार से सम्बन्धित कानून सन् 2010 में लागू किया।

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